उत्तराखंड
जब हम ‘शहीद’ शब्द सुनते हैं तो हमारी आंखों के सामने एक फौजी की तस्वीर उभरती है. जो देश की सीमा पर खड़ा है. बंदूक हाथ में और वर्दी तन पर, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे जंगलों की सीमाओं पर भी कुछ ऐसे सिपाही हैं, जो बिना बंदूक, बिना हेलमेट, बिना बुलेटप्रूफ जैकेट. हर दिन जान हथेली पर लेकर डटे रहते हैं?
जी हां, ये कहानी है देश के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यान कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की. जहां पिछले चार दशकों में 35 से ज्यादा वनकर्मी जंगल और वन्यजीवों की रक्षा करते हुए शहीद हो चुके हैं. बाघों की दहाड़ और जंगल की खामोशी के बीच जो आवाज अक्सर अनसुनी रह जाती है, वो है वन रक्षकों के बलिदान की.
कॉर्बेट पार्क में शहीद हो चुके 35 जवान
साल 1982 से 2025 तक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 35 से ज्यादा वनकर्मी बाघ, हाथी, गुलदार और भालू जैसे जंगली जानवरों के हमले में मारे गए हैं. ये वो वीर हैं, जो हर दिन जंगलों की निगरानी करते हैं. न सिर्फ अवैध शिकारियों से बल्कि, प्राकृतिक खतरों से भी खेलते हैं.
कॉर्बेट के धनगढ़ी इंटरप्रिटेशन सेंटर में इन वीरों की याद में एक विशेष स्मारक बनाया गया है. जहां हर पत्थर पर एक नाम, एक कहानी और एक शहादत लिखा है. जो ये बताती है कि जंगल सिर्फ पेड़ों से नहीं, उनकी रक्षा करने वालों के बलिदान से भी जिंदा हैं.
अपने जबाजों के बारे में क्या कहते हैं अधिकारी
“हमारे वनकर्मी दिन-रात जंगलों में गश्त करते हैं. टाइगर, हाथी, लेपर्ड जैसे खतरनाक जानवरों से सीधा सामना करते हैं. कई बार ये टकराव जानलेवा साबित होता है, लेकिन इनका जज्बा कम नहीं होता. ये हर मौसम, हर खतरे के बीच डटे रहते हैं.”-साकेत बडोला निदेशक, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व
उधर दूसरी ओर सरकार ने शहीदों के परिवारों को विभाग में नौकरी जरूर दी है, लेकिन सम्मान और सुरक्षा की जो गारंटी होनी चाहिए, वो अभी भी अधूरी है. जंगल की रक्षा करना देश की आंतरिक सुरक्षा का ही हिस्सा है.
जब कोई वनरक्षक शहीद होता है तो सिर्फ एक परिवार नहीं, पूरा जंगल अनाथ हो जाता है. शहीद सिर्फ बॉर्डर पर नहीं होते, हर वो जगह जहां कोई वर्दी में अपने फर्ज के लिए जान देता है, वो जमीन शहीदों की है. कॉर्बेट के इन गुमनाम वीरों को सलाम उनकी कुर्बानी को सिर्फ पत्थर पर नाम न बनने दें. बल्कि, हर दिल में इज्जत और हर नीति में सुरक्षा का स्थान दें.