22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान देवप्रयाग स्थित रघुनाथ मंदिर में जन प्रतिनिधियों के घुसने पर आखिर क्योँ लगी रोक

22 जनवरी को रामलला का प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हैं लेकिन इससे ठीक पहलें भगवान राम की नगरी देवप्रयाग में जनप्रतिनिधियों का विरोध शुरू हों गया हैं. पूर्व सूचना आयुक्त एवं नैनीताल हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता देवप्रयाग निवासी राजेंद्र कोटियाल ने स्पष्ट किया हैं कि भगवान राम की नगरी देवप्रयाग में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित रघुनाथ जी मंदिर में किसी भी जनप्रतिनिधि को नहीं घुसने दिया जाएगा. राजेंद्र कोटियाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि ज़ब आदि गुरु शंकराचार्यो का देश में अपमान किया जा रहा हैं तों फिर उनके द्वारा देवप्रयाग में स्थापित रघुनाथ जी के मंदिर में 22 जनवरी को किसी भी जनप्रतिनिधि को नहीं घुसने दिया जाएगा.पूर्व सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार मास्टर प्लान के तहत बद्रीनाथ धाम में जितने भी निर्माण कार्य करवा रहीं हैं वहाँ वों मनमानी कर रहीं हैं और आज तक देवप्रयाग स्थित भगवान राम के रघुनाथ मंदिर में किसी भी प्रकार का क़ोई सहयोग उसकी तरफ से नहीं मिला हैं.साथ ही उहोने कहा कि अयोध्या में 22 जनवरी को होंने वाले भगवान रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का वह स्वागत करतें हैं लेकिन जिस प्रकार आदि गुरु शंकराचार्यो का अपमान हों रहा हैं उसे वह बर्दास्त नहीं कर सकतें और इसीलिए देवप्रयाग वासियों ने फैसला किया हैं कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा देवप्रयाग में स्थापित रघुनाथ जी के मंदिर में 22 जनवरी को किसी भी जनप्रतिनिधि को घुसने नहीं दिया जाएगा.

8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने रखी थी रघुनाथ मंदिर की नीव

देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम पर रघुनाथ मंदिर स्थित हैं,जों भगवान राम को समर्पित है. रघुनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देवों में से एक है. रघुनाथ मंदिर में भगवान राम (जो कि विष्णु के अवतार थे) और माता सीता (जो कि देवी लक्ष्मी की अवतार थी) की पूजा की जाती है.माना जाता है कि 8वीं शताब्दी के दौरान मंदिर गढ़वाल साम्राज्य के बाद के विस्तार के साथ आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर को स्थापित किया गया था. यह मंदिर मूल रूप से 10 वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया.माना जाता है कि भगवान राम ने रावण की हत्या की थी,रावण एक ब्रह्माण था, इसलिए भगवान राम ने एक ब्रह्माण की हत्या का पश्चाताप करने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी.