उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी 1 जून 2024 यानि आज से पर्यटकों के लिए खुल गई है.उप वन संरक्षक बीबी मर्तोलिया ने घांघरिया बेस कैंप से 48 पर्यटकों के पहले दल को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. डीएफओ ने बताया कि सेंचुरी एरिया होने के कारण पर्यटक फूलों की घाटी में रात्रि को नही रूक सकते है. पर्यटकों को फूलों की घाटी का ट्रैक करने के बाद उसी दिन बेस कैंप घांघरिया वापस आना अनिवार्य किया गया है. बेस कैंप घांघरिया में पर्यटकों के ठहरने की समुचित व्यवस्था है.उन्होंने बताया कि वैली ऑफ फ्लावर ट्रैकिंग के लिए देशी नागरिकों को 200 रुपये तथा विदेशी नागरिकों के लिए 800 रुपये ट्रेक शुल्क निर्धारित है. ट्रैक को सुगम और सुविधाजनक बनाया गया है. फूलों की घाटी के लिए बेस कैंप घांघरिया से टूरिस्ट गाइड की सुविधा भी उपलब्ध है. इस साल फूलों की घाटी 31अक्टूबर तक पर्यटकों के लिए खुली रहेगी.
फूलों की घाटी ट्रैक अपने फूलों के लिए दुनिया भर में मशहूर है. इस घाटी के रोचक बात ये है कि ये घाटी हर 15 दिन में अपना रंग बदल लेती है. फूलों की कुछ प्रजाति ऐसी है जो आपको सिर्फ यही देखने को मिलती है. फूलों की घाटी दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियों से समृद्ध है और जैव विविधता का अनुपम खजाना है. यहां 500 से अधिक प्रजाति के रंग बिरंगी फूल खिलते है.हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक फूलों की घाटी का दीदार करने आते है. प्रकृति प्रेमियों के लिए फूलों की घाटी से टिपरा ग्लेशियर, रताबन चोटी, गौरी और नीलगिरी पर्वत के बिहंगम नजारे भी देखने को मिलते है.
- 87 वर्ग किलोमीटर फैली हैँ फूलों की घाटी
हिमालय की विशाल पर्वतमालाओं की शानदार पृष्ठभूमि के साथ, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान आगंतुकों के लिए एक अलौकिक दृश्य और अविस्मरणीय अनुभव प्रस्तुत करता है। चमोली जिले में 87 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के दो मुख्य क्षेत्रों (दूसरा नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान है) में से एक है।
माना जाता है कि इस घाटी की खोज 1931 में हुई थी, जब फ्रैंक एस स्माइथ के नेतृत्व में तीन ब्रिटिश पर्वतारोही अपना रास्ता भूल गए और इस शानदार घाटी पर पहुँच गए। इस जगह की खूबसूरती से आकर्षित होकर उन्होंने इसे “फूलों की घाटी” नाम दिया.